tag:blogger.com,1999:blog-2246434188259243530.post4204021322418494700..comments2023-04-17T05:00:04.786-05:00Comments on "विश्वम्भरा" : विश्वं भवत्येक नीडम्: हिन्दी और प्रवासी भारतीयUnknownnoreply@blogger.comBlogger3125tag:blogger.com,1999:blog-2246434188259243530.post-3579305057913198642019-04-17T09:40:31.419-05:002019-04-17T09:40:31.419-05:00मैडम
यूजीसी अनुदान के गलत इस्तेमाल के बारे में तो ...मैडम<br />यूजीसी अनुदान के गलत इस्तेमाल के बारे में तो आपने ठीक कहा। <br />पर अब कई मायनों में वर्तमान परिस्थितयों में बदलाव दीख रहा है।प्रवासी हिन्दी साहित्यhttps://www.blogger.com/profile/00030325514223619906noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2246434188259243530.post-39918570742536189702019-04-17T05:45:16.040-05:002019-04-17T05:45:16.040-05:00इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.प्रवासी हिन्दी साहित्यhttps://www.blogger.com/profile/00030325514223619906noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2246434188259243530.post-54484815158736570652012-09-15T09:47:04.329-05:002012-09-15T09:47:04.329-05:00राकेश जी आपका 'हिंदी और प्रवासी भारतीय'निब...राकेश जी आपका 'हिंदी और प्रवासी भारतीय'निबंध पढ़ा. लेख संतुलित है. हिंदी भाषा और साहित्य पर जो कार्य विदेशों में हुआ है उसका मूल्यांकन करते हुए आपने जो भौगौलिक और भारतीय मूल के बसाव का तुलनात्मक पैमाना लिया है उससे स्थिति थोड़ी और साफ हो जाती है. यूँ यदि इमांदारी से देखा जाए तो हिंदी ने जो विश्व मे स्थान बनाया है वह हिंदी सिनेमा और विदेशों में रह रहे भारतवंशियों द्वारा ही स्पंदित है. भारत में हिंदी में काम तो कम पर हल्ला- दंगा,छीना- झपटी ज्यादा हो रही है साथ ही हिंदी को ईधन बना कर मुफ्त की रोटियाँ खूब सेंकी रही है. आजकल UGC का पैसा किस बेदर्दी इस्तेमाल हो रहा यह हम सबको मालूम है. UGC से बड़े बड़े ग्रांट लेकर लोग विदेशों में लिखे जा रहे साहित्य पर बिना कोई अनुसंधान किए आधे अधूरे अपरिपक्व पर्चे पढ़वा रहे है जबकि होना यह चाहिए कि भारतवंशी लेखकों को निमंत्रित कर उनसे प्रामाणिक व्याख्यान सुना जाए किंतु ऐसा करने में उनको मिला रुपया उनकी झोली में न जा कर साहित्यकार को यात्रा व्यय देने में खर्च होगा यह उन्हें मान्य नहीं है.<br /> साउथ अफ्रिका में होनेवाले विश्वहिंदी सम्मेलन में ब्रिटेन के किसी भी भारतीय मूल के साहित्यकार अथवा विद्वान को व्याख्यान देने के लिए निमंत्रण नहीं भेजा गया है. विश्वस्त सूत्रों से पता चला है कि रस्म- अदाइगी के लिए ब्रिटेन के डॉ. कृष्ण कुमार को सम्मानित किया जा रहा है आज 14 सितंबर है उन्हें अभीतक कोई लिखित अथवा मौखिक सूचना नहीं आई है क्या सम्मान देने की यह भारतीय रीति है. क्या यह अँतर्राष्ट्रीय सम्मान का अपमान नहीं है.(कृष्ण कुमार जी इस समय अस्पताल में है.यदि ऐसी सुखद सूचना उन्हे भारत सरकार से मिल जाती तो उनके स्वास्थ्य लाभ में तेज़ी आ जाती.) ब्रिटेन के दो-तीन लेखकों ने आलेख भेजे आज तक उन्हें कोई सूचना नहीं आई है. 22 ता. में दिन कितने है? आलेख भेजनेवाले साहित्यकार संकोच में है कि टिकट बुक कराएँ अथवा नही!!! आलेख पढ़नेवालों में उनका नाम भी होगा या नहीं.Usha Raje Saxenahttps://www.blogger.com/profile/01774165307973164303noreply@blogger.com