शनिवार, 19 अप्रैल 2014

सिओल में अंतरराष्ट्रीय हिन्दी सम्मेलन-2014 संपन्न



13 से 15 मार्च 2014 तक हन्गुक यूनिवर्सिटी ऑफ फॉरेन स्टडीज, सिओल, दक्षिण कोरिया में अंतरराष्ट्रीय हिन्दी सम्मेलन आयोजित किया गया। इस 3 दिवसीय सम्मेलन का आयोजन विदेश मंत्रालय, भारत सरकार और भारतीय दूतावास, सिओल के सहयोग से किया गया।


सम्मेलन का उद्देश्य ऑस्ट्रेलिया, चीन, जापान, भारत और कोरिया समेत समस्त एशिया-प्रशांत क्षेत्र में हिन्दी भाषा के शिक्षण और अध्यापन को बढ़ावा देना था। दो दिन के 5 अकादमिक सत्रों में कुछ 18 आलेख पढ़े गए।

उद्घाटन समारोह का संचालन भारत अध्ययन विभाग से प्रोफेसर लिम गन दोंग ने किया। सिओल से कुछ दूर हन्गुक यू‍निवर्सिटी के ग्लोबल परिसर योंगिन में आयोजित सम्मेलन में स्वागत भाषण विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर किम इन छल ने ‍दिया। 

उद्घाटन संबोधन दक्षिण कोरिया में भारत के राजदूत महामहिम विष्णु प्रकाश ने दिया। हिन्दीसेवी सम्मान प्राप्तकर्ता और विभाग के प्रोफेसर एमेरिटस प्रोफेसर ली जंग हो ने 'भारत और हिन्दी की याद' शीर्षक स्मृति चि‍त्र प्रस्तुत किया।

पहले अकादमिक सत्र में 4 वक्ता थे। महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय, वर्धा के पूर्व कुलपति विभूतिनारायण राय ने 'विदेशी भाषा के रूप में हिन्दी पढ़ाने में महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय का योगदान' शीर्षक आलेख पढ़ा।

ऑस्ट्रेलिया नेशनल यू‍निवर्सिटी से प्रोफेसर पीटर फ्रीडलैंडर ने 'ऑस्ट्रेलिया में हिन्दी : अतीत, वर्तमान और भविष्य' शीर्षक के अपने आलेख की पावर पॉइंट प्रस्तुति में ऑस्ट्रेलिया में हिन्दी शिक्षण के ऐतिहासिक विकास क्रम को स्पष्ट करते हुए विदेशी भाषा के रूप में हिन्दी अध्यापन के लिए टास्क बेस्ड लर्निंग, ऑडियो-लिंगुअल और कम्युन‍िकेटिव स्टाइल ऑफ टीचिंग की अवधारणा को रेखांकित किया।

तीसरी वक्ता के रूप में हन्गुक यू‍निवर्सिटी ऑफ फॉरेन स्टडीज से प्रोफेसर विजया सती ने अपने आलेख 'बुदापैश्त में हिन्दी अध्यापन : कुछ स्मृतियाँ' में ऐलते विश्वविद्यालय, बुदापैश्त में अपने अध्यापन काल के अनुभव साझा किए। सत्र की अंतिम वक्ता हन्गुक यू‍निवर्सिटी ऑफ फॉरेन स्टडीज की प्रोफेसर किम ऊ जो ने 'दक्षिण कोरिया में हिन्दी शिक्षण : 40 वर्ष का सफर' शीर्षक अपने आलेख में कोरिया में हिन्दी शिक्षण के विकास को विस्तार सहित प्रस्तुत किया।

दूसरे अकादमिक सत्र में विषय रखा गया था- 'हिन्दी एवं उसका विकास'। अध्यक्षता एवं संचालन प्रो. छोई जोंग छान ने किया। प्रथम वक्ता के रूप में चीन के शिआन इंटरनेशनल स्टडीज विश्वविद्यालय से आए प्रो. गे फु‍पिंग ने 'भारतीय लोगों का सांस्कृतिक मनोविज्ञान और हिन्दी व्यवहार की विशेषताएँ' शीर्षक से आलेख पढ़ा। हन्गुक विश्वविद्यालय से डॉ. क्षिशतोफ इवानेक ने 'विद्या भारती स्कूलों में हिन्दी भाषा अध्यापन' पर आलेख पढ़ा। हन्गुक विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग से प्रो. हृदयनारायण के आलेख का शीर्षक था- 'हिन्दी और राष्ट्रवाद।' 

दूसरे दिन तीसरे अका‍दमिक स‍त्र में हन्गुक विश्वविद्यालय से प्रो. लिम गन दोंग ने 'हिन्दी शिक्षण में संस्कृत शिक्षा का योगदान', जापान के दाइताबुंका विश्वविद्यालय से प्रो. हिदेआकी इशिदा ने 'हिन्दी शिक्षण में लोककथाओं की उपयोग‍िता', दिल्ली विश्वविद्यालय से डॉ. सारस्वत मोहन मनीषी ने 'हिन्दी स‍ाहित्य शिक्षण में तुलसीदास की उपयोगिता' और पेकिंग विश्वविद्यालय के दक्षिण एशियाई अध्ययन केंद्र के निदेशक प्रो. जियांग कुई ने 'भारतीय ग्रंथों का चीनी भाषा में अनुवाद' शीर्षक आलेख पढ़े।

चौथे अकादमिक सत्र में पहला आलेख प्रो. फुजिइ ताकेशी ने प्रस्तुत किया, जो टोकियो यूनिवर्सिटी ऑफ फॉरेन स्टडीज से थे, शीर्षक था- 'डिजिटल युग में हिन्दी भाषा और साहित्य का अध्ययन- अध्यापन'।

हन्गुक विश्वविद्यालय के प्रो. ली उन गू ने ‍'हिन्दी फिल्मी ‍गीतों के माध्यम से हिन्दी शिक्षण' विषय पर अपने विचार रखे। प्रो. रामबक्ष के आलेख का शीर्षक था- 'भूमंडलीकरण और हिन्दी का अध्ययन।'

पांचवें अंतिम सत्र में प्रथम वक्ता केंद्रीय हिन्दी संस्थान भारत से प्रो. मोहन ने 'हिन्दी सीखने वाले कोरियाई विद्यार्थियों का अधिगम-व्यवहार और अपेक्षाएँ' शीर्षक से अपनी बात कही।

ओसाका विश्वविद्यालय जापान से प्रो. चिहिरो कोइसो ने 'हिन्दी शिक्षा में पढ़ने वालों की अभिप्रेरणा कैसे बढ़नी चाहिए' विषय पर संवाद किया। खो थे जीन बुसान विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग से थे जिन्होंने 'कोरिया में हिन्दी : अध्यापन एक अनुभव' शीर्षक से वक्तव्य दिया। प्रो. हु रुई ग्वांगदोंग विदेश अध्ययन विश्वविद्यालय चीन से आए थे और उन्होंने 'अभाव पूर्ति सिद्धांत की दृष्टि से हिन्दी शिक्षा पर कुछ विचार' प्रस्तुत किए।

सम्मेलन के समापन समारोह की अध्यक्षता और संचालन हन्गुक विश्वविद्यालय से प्रो. किम ऊ जो ने किया जिसमें पहले सभी अकादमिक सत्रों की संक्षिप्त रिपोर्ट प्रो. मोहन और प्रो. पीटर फ्रीहलैंडर ने प्रस्तुत की। समापन वक्तव्य उपसचिव, विदेश मंत्रालय, सुनीति शर्मा और भारतीय दूतावास सिओल के भारतीय सांस्कृतिक केंद्र की निदेशक निहारिका सिंह ने दिया।
प्रस्तु‍ति : विजया सती

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