शनिवार, 16 जून 2012

दक्षिण चीन में स्थापित होगी हिन्दी पीठ




बीजिंग, जून 11 

चीन में हिन्दी उन चंद विदेशी भाषाओं में शामिल है जिनकी लोकप्रियता बढ़ रही है। हिन्दी का प्रवेश अब दक्षिणी चीन में होने जा रहा है क्योंकि गुआंगझोउ विश्वविद्यालय में भारत की राष्ट्रभाषा सिखाने के लिए एक पीठ कायम की जायेगी।


गुआंगझोउ विश्वविद्यालय विदेशी अध्ययन विभाग और भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद आईसीसीआर) के बीच इस पीठ को स्थापित करने के लिए आज सहमति पत्र पर हस्ताक्षर किये गये। आईसीसीआर दक्षिणी चीन में यह पहली हिन्दी पीठ स्थापित करेगा।


पीकिंग विश्वविद्यालय, बीजिंग विदेशी अध्ययन विश्वविद्यालय सहित विभिन्न चीनी विश्वविद्यालय एवं चीन के विभिन्न हिस्सों में स्थित कई कालेजों में हिन्दी का अध्ययन कराया जाता है।


व्याख्याताओं का कहना है कि चीन में यह भाषा लोकप्रिय हो रही है। कुछ लोग इसे करिअर से जोड़ते हैं। इसके भारत और चीन के बीच बढ़ता आपसी व्यापार है जो पिछले साल 74 अरब डालर पहुँच गया था और इस साल 2015 तक 100 अरब डालर पहुँचने की संभावना है।


भारतीय दूतावास यहाँ हर साल हिन्दी दिवस आयोजित करता है जिसमें चीन भर के हिन्दी प्रशंसक बड़ी संख्या में जुटते हैं। इसके अलावा प्रवासी भारतीयों ने बीजिंग में रविवार विद्यालय गुरुकुल नाम से खोला है जिसमें हिन्दी और भारतीय संस्कृति सिखायी जाती है। लता अय्यर के नेतृत्व में चलाये जाने वाले स्कूल में प्रिया सुंदरराजन, मनीषा भाखड़े, कृष्णा दासगुप्ता और दीपा तुलसीदास शामिल हैं।


भारतीय दूतावास द्वारा जारी विज्ञप्ति के अनुसार आज सहमति पत्र पर गुआंगझोउ में भारतीय वाणिज्य महादूत इंद्रा मणि पांडेय और गुआंगझोउ विश्वविद्यालय विदेशी अध्ययन के अध्यक्ष झोंग वेइहे ने हस्ताक्षर किये।


आईसीसीआर इससे पहले चीन में हिन्दी और भारतीय संस्कृति के प्रसार के लिए पांच पीठ स्थापित कर चुका है। तीन पीठ जिनान विश्वविद्यालय, शेनझेन विश्वविद्यालय एवं युनान विश्वविद्यालय में विभिन्न क्षेत्र के अध्ययन के लिए स्थापित की गयी हैं।


2 टिप्‍पणियां:

  1. कई बार सुनने में आता है कि भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद के माध्यम से हिंदी अध्यापन के लिए जाने वाले विद्वान प्रायः चीन जाने से कतराते हैं - अमरीका और यूरोप के लिए एडी चोटी का पसीना निकालते रहते हैं. खैर.....

    सुखद समाचार है. हिंदी को फैलना ही चाहिए.....दुनिया भर में.

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  2. चीन की रीत बड़ी निराली। उद्देश्य हिन्दी की लोकप्रियता नहीं अपितु व्यापार की सुलभता है। कुछ भी हो, हम तो यह मानकर चल रहे हैं कि भाषा से संवाद की सुलभता होगी और संवाद से एक-दूसरे को समझने की राह आसान होगी। आस्ट्रेलिया ने तो विदेशी भाषाओं में हिन्दी को सीखने की आवश्यकता को ही नकार दिया है।

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